एक बात तो में बतानी भूल ही रह्या था। कुछ दिन पहले मै ट्रेन में आ रह्या था । मेरे सामने वाली बर्थ पे दो लुगाई थी और एक छोट्टा बच्चा था, दिल्ली तै गाड्डी चाल्ली । आगरा में ओर पेसेंजर चढ़े , उनकी सीट पे जगां देख के बैठ गे । बोल्ले आगले टेसण तक जाणा सै । फेर आगले टेसण पे दूसरी सवारी भी चढ़ गी ,उनने भी आगले टेसण तक जाणा था। जब आगले टेसण पे सीट खाली हुयी तो में बोल्यो "माता जी आप अडे सो जाओ नही तो फेर कोई और बैठ जा गा । तो वा बोली " तन्ने मैं माताजी लाग्गू सूं ? तेरे ते कोई एक दो साल मेरी उम्र छोटी ही होगी। " मेरे तो जवाब सुण सांप सुंघ गया, काटो तो खून नही। मेरे ते रह्या नही गया "क्यूँ के बोले बिना रह नही सकता हरियाणे की इज्जत का सवाल था" तो मन्ने पूछा "ये छोटा बच्चा आपका पोता है के दोहिता? वा बोल्ली "दोहिता", मैं बोल्या "फेर तो हकीकत में मेरी उम्र आपसे बड़ी है। इससे बड़ा तो मेरा पडपोता सै ।" फेर वा बोल्ली " पण इतनी उम्र तो नहीं लगती आपकी" मै बोल्या " मैं जवान रहने वाली गोलियां खाता हूँ, तो बोल्ली " कहाँ मिलती है? मै बोल्या " के तूं भी लेगी", वो बोल्ली " ना ऐसे ही पूछ रही थी. तो मै बोल्या " फेर क्यूँ फालतू बावली हो रही सै," जिस गांव नहीं जाणा उसका रास्ता क्यूँ पूछना, नूये मजे ले,
तो ताऊ जी बड़ा खराब जमाना आ गया सै। जीजी कह दो जीजा जी मुफ्त में लो, भुआ कह दो फूफा साथ में मुफ्त में लो और अगर फूफा हो ही गया तो सारे रास्ते फेर उसकी सेवा करो, उसका हुक्का-चिलम भर के लाओ।
आख़िर में "लुहार" नै उसका यो ही तोड़ पाया के "मैडम" बोलो और आनन्द में रहो।
(और भाई कोई सलाह देनी तो मेरा घर का किवाड़ २४ घंटे खुल्ला सै। क्यूँ के बंद किवाड़ तो बाल-बच्चेदारों के ही मिलगे देश की जनसँख्या जो बढाणी से )
आपका
रमलू लुहार