रविवार, 27 दिसंबर 2009

जंगल कोठा का हिट मन्तर-इस्तेमाल करके देखो!

आज म्हारी बात कुलवंत हैप्पी जी ते हो रही थी तो वो बोल्या के भाई साब कई दिन होग्या थमने हरियाणी में कुछ  लिखे, एक आध पोस्ट लिख ही मारो, फेर मन्ने सोच्या के इब छोटे भाई की बात मानणी ही पड़ेगी. क्यूँ के म्हारे देश में छोटे भाईयों का भी ऊँचा ओहदा होया करे सै, अगर उसकी बात मान ले जब, नही तो ये छोटे जब खोटे हो ज्यां तो बड़ी-बड़ी लड़ाई भी भी हरवा दियां करें और थमने रावण और विभीषण वाली कहाणी तो सुण ही रक्खी सै. सारी लंका का नाश हो ग्या था. क्यूँ के रावण नै छोटे भाई की बात की तरफ ध्यान नहीं दिया और अपणी जिद के कारण हार करवा ली. एक कहावत भी बणी सै "क्षमा बडन को चाहिए छोटन को उत्पात" तो भाई मन्ने भी सोच्या के, बड़ा सूं तो राम का रोल तो करणा ही पड़ेगा नहीं तो फेर थम तो खुद समझदार सो के होगा?
 सरकार नै एक कानून बणा दिया के गांव में घरां में जंगल कोठा (लैट्रिन) होणा चाहिए. इब बाहर कोई जंगल नहीं जावैगा. बाहर जंगल जाण के कई नुकसान दिक्खे सरकार नै. सरकार नै देख्या के देश में लोग पढ़ लिख तो खूब रहए सें  पण लेखकां, साहित्यकारां और चिंतकां की बड़ी कमी हो रही सै. जिसके कारण देश और प्रदेश के विकास में बड़ी रूकावट खड़ी होगी सै. सरकार का सारा ही काम इन पै ही टिका हुआ सै. एक हिसाब सै तो इनका काळ ही पड़ ग्या.
इसका कारण ढूंढ़या गया तो बेरा पाट्या पहले तो पेड़ पौधों के जंगल थे. गांव के बाहर बणी होया करती, लोग आराम से जंगल हो आया करते, ब्रम्ह मुहूरत मै उठ कै जंगल मै रोज चिंतन करया करते थे. शांति के कारण नए-नए विचार दिमाग मै उमड़ते-घुमड़ते रहते. रोज कोई ना कोई राग- रागणी जनम ले लिया करते. जो सरकारी करमचारी थे, वे भी जंगल मै परजा की भलाई की नयी-नयी योजना सोच कै सरकार कै सामने धर दिया करते. सरकार नै भी लोक कल्याण करने के लिए योजना तैयार मिल्या करती. मंतरी और मुखमंतरी अपणा अंगूठा टेक कै झट उसने लागु कर देते.
इब गांवां की सारी बणी कट गई. बणीयों की जगहां बड़े-बड़े मॉल बणगे, जंगल नहीं रहे. लोगां नै अपने खेतां मै प्लाट काट लिए, कालोनी बसगी. चारुं तरफ कंक्रीट के जंगल होगे. इब जंगल जाण की समस्या होगी. तावळ-तावळ (जल्दी-जल्दी) मै मुंह अँधेरे जंगल करो और भाज ल्यो. कदे कोई देख ना ले, इस तावळ के कारण कई बीमारी पैदा होगी. लोगां का पेट ख़राब रहण लाग ग्या, कबज, अपच, बवासीर और भी तरह-तरह की बीमारी होवण लाग गी. सरकारी विकास मै रोड़े अटक गे. इब पेट में रोड़े अटक गे तो फेर पेट ही उमड़े घुमड़े गा, विचार किस तरियां आवेंगे? कित से  राग रागणी निकलेगी? किस्से - कहाणी, चिंतन कहाँ से निकलेंगे? पहले पेट का मलबा तो निकले. यो ही हाल सारे सरकारी कर्मचारियों का हो ग्या. सारा दफ्तर ही एक कार्बन डाईआक्साईड चैंबर बण गया चारू तरफ यो समस्या ही गंभीर होयगी.
इब समस्या ने देख कै यो कानून  बणाया के घर-घर मै जंगल कोठा होणा चाहिए. क्यूँ के जंगल ही सरकार के लिए बहुत बड़ी समस्या बणगे थे. इसका तोड़ जंगल कोठा ही था. जिसमे माणस आराम से अखबार, मोबाइल, चाय पाणी लेके बैठे और निश्चिन्त होके चिंतन करे. जंगल कोठा योजना तै  सरकार की सारी समस्या हल होगी और दफ्तर का हाल भी सुधर गया. साहित्कार और चिंतकां की भीड़ लाग गई. ब्लॉग पै भी बतावें सै पंद्रह हजार ब्लोग्गर आगे. सरकार की योजना रंग लाई, विकास के काम धड़ धड शुरू होगे. जंगल कोठा योजना नै तो सारा रोग ही काट दिया. 
जंगल कोठा शहरों मै तो पहले ही बण ग्या था. इसका महत्तम मन्ने भी देर ते समझ मै आया, पण जब समझ में आया तो भाईयों अपणी भी बल्ले बल्ले होयगी. मैं तो कवि जन्म ते बण गया था. मेरी भुआ बताया करती, जब मन्ने जनम लिया तो होते ही सुर मै है रोया था और लगातार दो तीन घंटे तो डटा ही नहीं, आज भी एकाध बर अगर कोई माईक थमा दे तो जब तक पब्लिक माथा नहीं पिटे तब या अपणी पीटण की नौबत नहीं आ जा तब तक मेरा ताई माईक नहीं छूटे.
कविता तो मै सकुल का टैम तै लिखे करता. अखबारों में भेज्या करता. लिख लिख खूब कागज काले करे. एक संपादक नै मेरी गैल साजिश करी और मेरी एक कविता छाप दी. फेर तो मै घोषित कवि बण ग्या. फेर तो रोज लिख-लिख के कविता भेजता. इब उनकी खबर आई के पता लिखा और टिकिट लगा एक खाली लिफाफा भी साथ भेजें नहीं तो आपकी कविता की कोई गारंटी नहीं है.एक संपादक नै लिख कै भेज्या" आपकी कविता बहुत ही अच्छी है. बहुत अच्छा भाव है हम आपकी कविता का उपयोग नहीं कर कर पा रहे हैं, हम खेद सहित कहते हैं आप भव बनाये रखे एवं इस कविता का अन्यत्र उपयोग करने के लिए स्वतंत्र हैं." इब थम ही बताओ कविता भी म्हारी और ये ऊत हमने ही स्वतंत्रता दे रहे सै. कविता छापनी बंद कर दी और हमने भी लिखना बंद कर दिया.
एक दिन मेरे एक मित्तर नै जंगल कोठा के महत्तम बारे मे बताया. मन्ने यूँ ही मजाक में ले लिया. पण एक दिन मैं अख़बार ले के जंगल कोठा मै गया हुआ था तो मेरे दिमाग मैं एक कविता की लहर उठी, मन्ने पेन और पैड जंगल कोठा मै ही रख लिया था.तो सीधी ही लिख मारी और एक नामी पत्रिका में भेज दी, के बताऊ भाई मेरे कविता परमुखता से छापी गई और मेरा गुण-गाण भी करया के बड़ी ऊँचे स्तर की कविता लिखते हैं. इसी तरह विषयों पर पकड रही तो देश के बड़े बड़े कवियों में नाम शुमार होगा. तो मन्ने जंगल कोठा का यो चमत्कार देख्या. मेरी कविता हिट हो गई.
मन्ने यो बात अपणे साहित्यकार दोस्त तै बताई तो वो बोल्या "इब तो मेरी बात का बिस्वास होया!"  जद तो तन्ने समझ मै नहीं आया, यो जितने भी बड़े - बड़े आदमी सै सारे ही जंगल कोठा मैं अपणे सोच का छौंक लगाया करे, इस बात का मन्ने पहले तै ही पता था. इब मेरी समझ मै आ ग्या था के जितने भी छापण वाले संपादक सै सारे ही जंगल कोठा कै चिन्तक सै. तो भाईयों इस समस्या का मन्ने भी तोड़ पा गया और सरकार नै भी. आज मेरी कविता और कहाणी बिदेशा मैं भी पढ़ी जा रही सै. जंगल कोठा कै चिंतन नै मन्ने भी हिट कर दिया. जब से लेके आज तक मन्ने सारे कागज जंगल कोठा मै ही काले करे.
इब ब्लोगिंग शुरू कर दी. कई दिन यूँ ही खाली निकल गे. कोई मेरा ब्लॉग पढ़ण नहीं आया . मन्ने इसका भी तोड़ ढूंढ़या और पाया. सूबे-सूबे उठ कै अपणा लैपटॉप ले कै जंगल कोठा मै कमोड पै बैठ कै ही पोस्ट करया करूँ. बस पोस्ट करता ही एक घंटा मै दस-पंद्रह कमेन्ट आ जाया करे और आत्मा नै तसल्ली मिल  जा सै. मैं अपणी पोस्ट भी उस टैम मै लगाया करूँ जद म्हारे सारे ब्लोगर अपणे-अपणे लैपटॉप ले के जंगल कोठा मै ही मिले सै. तो भाई मन्ने इनकी दुखती रग पकड़ रक्खी सै. अगर थमने भी कविता-कहाणी, व्यंग्य और पोस्ट हिट करनी सै तो जंगल कोठा का ही मंतर इस्तेमाल करो ओर हिट हो जाओ. मैं यो आप बीती भी जंगल कोठा तै ही पोस्ट कर रह्या सूं ... 

ललित शर्मा         

गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

" हट जा ताऊ पाच्छे नै दारू पिवण दे जी भर के नै"

यो ले  भाई,बात या थी के जित भी जाओ उत ताऊओ की ही चर्चा हो री सै,  मन्ने भी सोच्या साँझ का टैम सै जरा थोड़ी देर कनाट प्लेस के चक्कर काट आऊं, रीगल-रिवोली कने थोड़ी देर आंख भी सेक ल्यांगे और एकाध ओल्ड मंक का अद्धा भी ले ल्यांगे, आज जाड़ा घणा हो रह्या सै, मैं पंहुचा ही था तो म्हारे फौजी ताऊ मनफूल सिंग  सामने  दिक्खे  में तो बावला हो गया जी , अरे भाई  ताऊ जी अडे पहले ही पहुच गये, मन्ने तो बताया भी कोणी, और यो भी उरे ही सुवाद ले रहया सै. ताऊ बेटे का नाता म्हारे हरियाणे में बड़ा ही मशहूर  होया करे। बाज्जे वालों ने गाणा भी बना दिया - "हट जा ताऊ पाच्छे नै नाचण  दे जी भरके नै" तो बात या सै के पुरे हरियाणा के छोरे इस ताऊ तै ही दुखी हो रहे सै । ना खान दे ,ना पीने दे , ना नाचण दे, किसी णा किसी रूप मैं बैरी हर जगां पा जा सै, अपणा लट्ठ हमेशा ही ताणे राखे सै बैरी, जद ही मै कहूँ सूं के  ताऊ इब जमाना बदल गया, छोरों के साथ नाच्चो कुद्दो मौज मनाओ। ज्यादा परेसान करोगे तो चाँद मोहम्मद ने रास्ता तो काढ ही दिया सै। आगले का बाप्पू और दुखी सै । इसी फिजा लाया के पुरे खानदान की ही फिजा ख़राब करके धर दी । तो दुनिया के जितने भी बड़े-बड़े ताऊ जी सै, ईणने  यो ही सलाह सै के इब मान भी जाओ । और छोरों ने नाचण  दयो, कूदण दयो, मजे लेण दयो ,इब छोरों ने नया गाना और बना लिया " हट जा ताऊ पाच्छे नै दारू पिवण दे जी भर के नै" 
एक बात तो में बतानी भूल ही रह्या था। कुछ दिन पहले मै ट्रेन में आ रह्या था । मेरे सामने वाली बर्थ पे दो लुगाई थी और एक छोट्टा बच्चा था, दिल्ली तै गाड्डी चाल्ली । आगरा में ओर पेसेंजर चढ़े , उनकी सीट पे जगां देख के बैठ गे । बोल्ले आगले टेसण  तक जाणा सै । फेर आगले टेसण  पे दूसरी सवारी भी चढ़ गी ,उनने भी आगले टेसण तक जाणा था। जब आगले टेसण  पे सीट  खाली हुयी तो में बोल्यो "माता जी आप अडे सो जाओ नही तो फेर कोई और बैठ जा गा । तो वा बोली " तन्ने मैं  माताजी लाग्गू सूं ? तेरे ते कोई एक दो साल मेरी उम्र छोटी ही होगी। " मेरे तो जवाब सुण सांप सुंघ गया, काटो तो खून नही। मेरे ते रह्या नही गया "क्यूँ के बोले बिना रह नही सकता हरियाणे की इज्जत का सवाल था"  तो मन्ने पूछा "ये छोटा बच्चा आपका पोता है के दोहिता? वा बोल्ली  "दोहिता", मैं बोल्या "फेर तो हकीकत में मेरी उम्र आपसे बड़ी है। इससे बड़ा तो मेरा पडपोता सै ।" फेर वा बोल्ली " पण इतनी उम्र तो नहीं लगती आपकी" मै बोल्या " मैं जवान रहने वाली गोलियां खाता हूँ, तो बोल्ली " कहाँ मिलती है? मै बोल्या " के तूं भी लेगी", वो बोल्ली " ना ऐसे ही पूछ रही थी. तो मै बोल्या " फेर क्यूँ फालतू बावली हो रही सै," जिस गांव नहीं जाणा उसका रास्ता क्यूँ पूछना, नूये मजे ले,
तो ताऊ जी बड़ा खराब जमाना आ गया सै। जीजी  कह दो जीजा जी मुफ्त में लो, भुआ कह दो फूफा साथ में मुफ्त में लो और अगर फूफा हो ही गया तो सारे रास्ते फेर उसकी सेवा करो, उसका हुक्का-चिलम भर के लाओ
आख़िर में "लुहार" नै उसका यो ही तोड़ पाया के "मैडम" बोलो और आनन्द में रहो।


(और भाई कोई सलाह देनी तो मेरा घर का किवाड़ २४ घंटे खुल्ला सै। क्यूँ के बंद किवाड़ तो बाल-बच्चेदारों के ही मिलगे देश की जनसँख्या जो बढाणी से )



आपका 
रमलू लुहार

 

फ़ौजी ताऊ की फ़ौज