मंगलवार, 15 सितंबर 2009

हिंदी नहीं आती तो भैंस ही चराते :- रिटायर फौजी हवलदार ताऊ मनफूल सिंग कहणा

आज ताऊ दोपहरे में ही आ गया बोल्या रमलू के कर रहया सै ,
मैं बोल्या ताऊ अखबार पढूं सुं,
ताऊ बोल्या के समाचार लिख रखया सै ,
मैं बोल्या ताऊ कल हिन्दी दिवस मनाया गया सै ,उसे का समाचार सै,
ताऊ बोल्या -कोई नई बात?
मैं बोल्या -ताऊ नई बात सै के हिन्दी का परचार और प्रसार होना चाहिए हिन्दी राष्ट्रा भाषा तो बनगी पुरे राष्ट्र की भाषा नहीं बनी से
ताऊ बोल्या -क्यूँ ?
मैं बोल्या - साल में एक बार हल्ला मचावे हैं।हिंदी दिवस मनाया गया अख़बार में आपनी अपनी फोटो छाप ले हैं.हिंदी जिंदाबाद कर ले हैं, हो गया हिंदी दिवस,हिंदी नै सब जगह लागु करने के लिए राजनैतिक इच्छा शक्ति जरुरी हैं.सरकार ने हर जगह बोर्ड लगा रखे हैं, हिंदी लिखो, हिंदी आवेदन करो,हिंदी भाषा का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करो, पण मेरे को कही नहीं लगता के हिंदी सरकारी भाषा भी बनी हैं, सरकार की कथनी करनी में खुद ही फर्क हैं, ये सोच अंग्रेजों ने कम्पूटर भी हिंदी में बना दिया,चलो रे भाई तुम हिंदी वाले भी चलाओ, मेरे को अंग्रेजी बिलकुल ही नहीं आती, फेर भी मैं कम्पूटर चला लेता हूँ.
ताऊ बोल्या-भाई रमलू हिंदी बिना तो काम ही नहीं चलता, अंग्रेजों को भी हिंदुस्तान पे राज करने के लिए हिंदी सीखनी पड़ी थी,नहीं तो के वो राज कर सकते थे, जब उनसे अपना राज वापस लेना था तो हमारे नेताओं को अंग्रेजी सीखनी पड़ी,अंग्रेज तो चले गए राज छोड़ के पण यो अंग्रेजी इनके मत्थे लगा गये, सारे जितने बड़े काम हो सै ना सब अंग्रेज्जी मै हो सै. फेर हिंदी के साथ दोगली निति लगा रखी सै, जिसने अंग्रेजी पढ़ ली वो अफसर ,जिसने हिंदी पढ़ी वो चपरासी, बात ये भी राज की सै ,अगर चपरासी भी अंग्रेजी पढ़ा लिखा लगावेंगे तो साहब अफसरों की काली करतुते पढ़ नहीं लेगा, जाण नहीं जायेगा
मैं बोल्या -ताऊ आपने तो ये बड़े पते की बात कही, चाहे मंत्रालय का काम हो, कोर्ट कचहरी का सारा ही अंग्रेजी में हो से। एक बात और बताऊँ आपने, या लाइफ इंश्योरेंस कम्पनी जीवन बीमा सरकारी सै ,पर इसके अग्रीमेंट में लिख रखा सै के "विवाद की स्थिति में अंग्रेजी में लिखा हुआ अग्रेमेंट माना जायेगा.
ताऊ बोल्या-ये जीवन बीमा कम्पनी के अंग्रेज फूफे लगा करते थे।'सुसरे पैसे म्हारे और गुण अन्ग्रेज्जो के. के सरकार को नहीं दीखता के यो के करतूत करने लग रहे हैं.
मैं बोल्या-ताऊ आज ते नब्बे साल पहले अंग्रेजी राज में भरतपुर के महाराजा किशन सिंग जी ने अपने स्टेट में हिंदी लागु कर दी थी ,और डुंडी पीटवा दी थी के उनके राज में सरकारी काम सिर्फ हिंदी में ही होगा उसने १९१८ में राज सँभालते ही ये काम किया।राजनैतिक इच्छा शक्ति होना चाहिए बस,
ताऊ बोल्या-म्हारा हरियाणा,राजस्थान,उ।प,बिहार,छात्तिसगड़,हिमाचल,उत्तराखंड,एम्.पी.सारे ही हिंदी भासी परदेश हैं,यहाँ के आदमी को बिना हिंदी के काम ही नहीं चलता,थोडा घणा उच्चारण का ही फर्क हैं, भाई इतने साल हमने फौज नोकरी हिंदी में ही तो करी हैं.नहीं आज भी भैंस ही चराते रहते. भाई हिंदी म्हारी प्राण वायु हैं इसके बिना तो जीने की हम सोच ही नही सकते. आज से अपनी मण्डली वाले सारे बूढों को बोल देना की थोडी बहुत गलती चलेगी फेर हिंदी बोलने की कोशिश पूरी करें.आज म्हारा भी हिंदी दिवस हो गया. बाकी बाद में देखेंगे.

आपका
रमलू लुहार

 

फ़ौजी ताऊ की फ़ौज