15 अगस्त अमर रहे
एक लोहार की
फ़ौजी तौऊ मनफ़ूल की चौपाल
रविवार, 15 अगस्त 2010
मंगलवार, 26 जनवरी 2010
रिटायर हवलदार फ़ौजी ताऊ मनफ़ूल सिंग की तरफ़ से २६ जनवरी की बधाई!!
रिटायर हवलदार फ़ौजी ताऊ मनफ़ूल सिंग की तरफ़ से सभी देशवासियों को २६ जनवरी की बधाई और ग्रामीण विकास मंत्रालय की झांकी देखिए!
रविवार, 27 दिसंबर 2009
जंगल कोठा का हिट मन्तर-इस्तेमाल करके देखो!
आज म्हारी बात कुलवंत हैप्पी जी ते हो रही थी तो वो बोल्या के भाई साब कई दिन होग्या थमने हरियाणी में कुछ लिखे, एक आध पोस्ट लिख ही मारो, फेर मन्ने सोच्या के इब छोटे भाई की बात मानणी ही पड़ेगी. क्यूँ के म्हारे देश में छोटे भाईयों का भी ऊँचा ओहदा होया करे सै, अगर उसकी बात मान ले जब, नही तो ये छोटे जब खोटे हो ज्यां तो बड़ी-बड़ी लड़ाई भी भी हरवा दियां करें और थमने रावण और विभीषण वाली कहाणी तो सुण ही रक्खी सै. सारी लंका का नाश हो ग्या था. क्यूँ के रावण नै छोटे भाई की बात की तरफ ध्यान नहीं दिया और अपणी जिद के कारण हार करवा ली. एक कहावत भी बणी सै "क्षमा बडन को चाहिए छोटन को उत्पात" तो भाई मन्ने भी सोच्या के, बड़ा सूं तो राम का रोल तो करणा ही पड़ेगा नहीं तो फेर थम तो खुद समझदार सो के होगा?
सरकार नै एक कानून बणा दिया के गांव में घरां में जंगल कोठा (लैट्रिन) होणा चाहिए. इब बाहर कोई जंगल नहीं जावैगा. बाहर जंगल जाण के कई नुकसान दिक्खे सरकार नै. सरकार नै देख्या के देश में लोग पढ़ लिख तो खूब रहए सें पण लेखकां, साहित्यकारां और चिंतकां की बड़ी कमी हो रही सै. जिसके कारण देश और प्रदेश के विकास में बड़ी रूकावट खड़ी होगी सै. सरकार का सारा ही काम इन पै ही टिका हुआ सै. एक हिसाब सै तो इनका काळ ही पड़ ग्या.
इसका कारण ढूंढ़या गया तो बेरा पाट्या पहले तो पेड़ पौधों के जंगल थे. गांव के बाहर बणी होया करती, लोग आराम से जंगल हो आया करते, ब्रम्ह मुहूरत मै उठ कै जंगल मै रोज चिंतन करया करते थे. शांति के कारण नए-नए विचार दिमाग मै उमड़ते-घुमड़ते रहते. रोज कोई ना कोई राग- रागणी जनम ले लिया करते. जो सरकारी करमचारी थे, वे भी जंगल मै परजा की भलाई की नयी-नयी योजना सोच कै सरकार कै सामने धर दिया करते. सरकार नै भी लोक कल्याण करने के लिए योजना तैयार मिल्या करती. मंतरी और मुखमंतरी अपणा अंगूठा टेक कै झट उसने लागु कर देते.
सरकार नै एक कानून बणा दिया के गांव में घरां में जंगल कोठा (लैट्रिन) होणा चाहिए. इब बाहर कोई जंगल नहीं जावैगा. बाहर जंगल जाण के कई नुकसान दिक्खे सरकार नै. सरकार नै देख्या के देश में लोग पढ़ लिख तो खूब रहए सें पण लेखकां, साहित्यकारां और चिंतकां की बड़ी कमी हो रही सै. जिसके कारण देश और प्रदेश के विकास में बड़ी रूकावट खड़ी होगी सै. सरकार का सारा ही काम इन पै ही टिका हुआ सै. एक हिसाब सै तो इनका काळ ही पड़ ग्या.
इसका कारण ढूंढ़या गया तो बेरा पाट्या पहले तो पेड़ पौधों के जंगल थे. गांव के बाहर बणी होया करती, लोग आराम से जंगल हो आया करते, ब्रम्ह मुहूरत मै उठ कै जंगल मै रोज चिंतन करया करते थे. शांति के कारण नए-नए विचार दिमाग मै उमड़ते-घुमड़ते रहते. रोज कोई ना कोई राग- रागणी जनम ले लिया करते. जो सरकारी करमचारी थे, वे भी जंगल मै परजा की भलाई की नयी-नयी योजना सोच कै सरकार कै सामने धर दिया करते. सरकार नै भी लोक कल्याण करने के लिए योजना तैयार मिल्या करती. मंतरी और मुखमंतरी अपणा अंगूठा टेक कै झट उसने लागु कर देते.
इब गांवां की सारी बणी कट गई. बणीयों की जगहां बड़े-बड़े मॉल बणगे, जंगल नहीं रहे. लोगां नै अपने खेतां मै प्लाट काट लिए, कालोनी बसगी. चारुं तरफ कंक्रीट के जंगल होगे. इब जंगल जाण की समस्या होगी. तावळ-तावळ (जल्दी-जल्दी) मै मुंह अँधेरे जंगल करो और भाज ल्यो. कदे कोई देख ना ले, इस तावळ के कारण कई बीमारी पैदा होगी. लोगां का पेट ख़राब रहण लाग ग्या, कबज, अपच, बवासीर और भी तरह-तरह की बीमारी होवण लाग गी. सरकारी विकास मै रोड़े अटक गे. इब पेट में रोड़े अटक गे तो फेर पेट ही उमड़े घुमड़े गा, विचार किस तरियां आवेंगे? कित से राग रागणी निकलेगी? किस्से - कहाणी, चिंतन कहाँ से निकलेंगे? पहले पेट का मलबा तो निकले. यो ही हाल सारे सरकारी कर्मचारियों का हो ग्या. सारा दफ्तर ही एक कार्बन डाईआक्साईड चैंबर बण गया चारू तरफ यो समस्या ही गंभीर होयगी.
इब समस्या ने देख कै यो कानून बणाया के घर-घर मै जंगल कोठा होणा चाहिए. क्यूँ के जंगल ही सरकार के लिए बहुत बड़ी समस्या बणगे थे. इसका तोड़ जंगल कोठा ही था. जिसमे माणस आराम से अखबार, मोबाइल, चाय पाणी लेके बैठे और निश्चिन्त होके चिंतन करे. जंगल कोठा योजना तै सरकार की सारी समस्या हल होगी और दफ्तर का हाल भी सुधर गया. साहित्कार और चिंतकां की भीड़ लाग गई. ब्लॉग पै भी बतावें सै पंद्रह हजार ब्लोग्गर आगे. सरकार की योजना रंग लाई, विकास के काम धड़ धड शुरू होगे. जंगल कोठा योजना नै तो सारा रोग ही काट दिया.
जंगल कोठा शहरों मै तो पहले ही बण ग्या था. इसका महत्तम मन्ने भी देर ते समझ मै आया, पण जब समझ में आया तो भाईयों अपणी भी बल्ले बल्ले होयगी. मैं तो कवि जन्म ते बण गया था. मेरी भुआ बताया करती, जब मन्ने जनम लिया तो होते ही सुर मै है रोया था और लगातार दो तीन घंटे तो डटा ही नहीं, आज भी एकाध बर अगर कोई माईक थमा दे तो जब तक पब्लिक माथा नहीं पिटे तब या अपणी पीटण की नौबत नहीं आ जा तब तक मेरा ताई माईक नहीं छूटे.
कविता तो मै सकुल का टैम तै लिखे करता. अखबारों में भेज्या करता. लिख लिख खूब कागज काले करे. एक संपादक नै मेरी गैल साजिश करी और मेरी एक कविता छाप दी. फेर तो मै घोषित कवि बण ग्या. फेर तो रोज लिख-लिख के कविता भेजता. इब उनकी खबर आई के पता लिखा और टिकिट लगा एक खाली लिफाफा भी साथ भेजें नहीं तो आपकी कविता की कोई गारंटी नहीं है.एक संपादक नै लिख कै भेज्या" आपकी कविता बहुत ही अच्छी है. बहुत अच्छा भाव है हम आपकी कविता का उपयोग नहीं कर कर पा रहे हैं, हम खेद सहित कहते हैं आप भव बनाये रखे एवं इस कविता का अन्यत्र उपयोग करने के लिए स्वतंत्र हैं." इब थम ही बताओ कविता भी म्हारी और ये ऊत हमने ही स्वतंत्रता दे रहे सै. कविता छापनी बंद कर दी और हमने भी लिखना बंद कर दिया.
एक दिन मेरे एक मित्तर नै जंगल कोठा के महत्तम बारे मे बताया. मन्ने यूँ ही मजाक में ले लिया. पण एक दिन मैं अख़बार ले के जंगल कोठा मै गया हुआ था तो मेरे दिमाग मैं एक कविता की लहर उठी, मन्ने पेन और पैड जंगल कोठा मै ही रख लिया था.तो सीधी ही लिख मारी और एक नामी पत्रिका में भेज दी, के बताऊ भाई मेरे कविता परमुखता से छापी गई और मेरा गुण-गाण भी करया के बड़ी ऊँचे स्तर की कविता लिखते हैं. इसी तरह विषयों पर पकड रही तो देश के बड़े बड़े कवियों में नाम शुमार होगा. तो मन्ने जंगल कोठा का यो चमत्कार देख्या. मेरी कविता हिट हो गई.
मन्ने यो बात अपणे साहित्यकार दोस्त तै बताई तो वो बोल्या "इब तो मेरी बात का बिस्वास होया!" जद तो तन्ने समझ मै नहीं आया, यो जितने भी बड़े - बड़े आदमी सै सारे ही जंगल कोठा मैं अपणे सोच का छौंक लगाया करे, इस बात का मन्ने पहले तै ही पता था. इब मेरी समझ मै आ ग्या था के जितने भी छापण वाले संपादक सै सारे ही जंगल कोठा कै चिन्तक सै. तो भाईयों इस समस्या का मन्ने भी तोड़ पा गया और सरकार नै भी. आज मेरी कविता और कहाणी बिदेशा मैं भी पढ़ी जा रही सै. जंगल कोठा कै चिंतन नै मन्ने भी हिट कर दिया. जब से लेके आज तक मन्ने सारे कागज जंगल कोठा मै ही काले करे.
इब ब्लोगिंग शुरू कर दी. कई दिन यूँ ही खाली निकल गे. कोई मेरा ब्लॉग पढ़ण नहीं आया . मन्ने इसका भी तोड़ ढूंढ़या और पाया. सूबे-सूबे उठ कै अपणा लैपटॉप ले कै जंगल कोठा मै कमोड पै बैठ कै ही पोस्ट करया करूँ. बस पोस्ट करता ही एक घंटा मै दस-पंद्रह कमेन्ट आ जाया करे और आत्मा नै तसल्ली मिल जा सै. मैं अपणी पोस्ट भी उस टैम मै लगाया करूँ जद म्हारे सारे ब्लोगर अपणे-अपणे लैपटॉप ले के जंगल कोठा मै ही मिले सै. तो भाई मन्ने इनकी दुखती रग पकड़ रक्खी सै. अगर थमने भी कविता-कहाणी, व्यंग्य और पोस्ट हिट करनी सै तो जंगल कोठा का ही मंतर इस्तेमाल करो ओर हिट हो जाओ. मैं यो आप बीती भी जंगल कोठा तै ही पोस्ट कर रह्या सूं ...
इब समस्या ने देख कै यो कानून बणाया के घर-घर मै जंगल कोठा होणा चाहिए. क्यूँ के जंगल ही सरकार के लिए बहुत बड़ी समस्या बणगे थे. इसका तोड़ जंगल कोठा ही था. जिसमे माणस आराम से अखबार, मोबाइल, चाय पाणी लेके बैठे और निश्चिन्त होके चिंतन करे. जंगल कोठा योजना तै सरकार की सारी समस्या हल होगी और दफ्तर का हाल भी सुधर गया. साहित्कार और चिंतकां की भीड़ लाग गई. ब्लॉग पै भी बतावें सै पंद्रह हजार ब्लोग्गर आगे. सरकार की योजना रंग लाई, विकास के काम धड़ धड शुरू होगे. जंगल कोठा योजना नै तो सारा रोग ही काट दिया.
जंगल कोठा शहरों मै तो पहले ही बण ग्या था. इसका महत्तम मन्ने भी देर ते समझ मै आया, पण जब समझ में आया तो भाईयों अपणी भी बल्ले बल्ले होयगी. मैं तो कवि जन्म ते बण गया था. मेरी भुआ बताया करती, जब मन्ने जनम लिया तो होते ही सुर मै है रोया था और लगातार दो तीन घंटे तो डटा ही नहीं, आज भी एकाध बर अगर कोई माईक थमा दे तो जब तक पब्लिक माथा नहीं पिटे तब या अपणी पीटण की नौबत नहीं आ जा तब तक मेरा ताई माईक नहीं छूटे.
कविता तो मै सकुल का टैम तै लिखे करता. अखबारों में भेज्या करता. लिख लिख खूब कागज काले करे. एक संपादक नै मेरी गैल साजिश करी और मेरी एक कविता छाप दी. फेर तो मै घोषित कवि बण ग्या. फेर तो रोज लिख-लिख के कविता भेजता. इब उनकी खबर आई के पता लिखा और टिकिट लगा एक खाली लिफाफा भी साथ भेजें नहीं तो आपकी कविता की कोई गारंटी नहीं है.एक संपादक नै लिख कै भेज्या" आपकी कविता बहुत ही अच्छी है. बहुत अच्छा भाव है हम आपकी कविता का उपयोग नहीं कर कर पा रहे हैं, हम खेद सहित कहते हैं आप भव बनाये रखे एवं इस कविता का अन्यत्र उपयोग करने के लिए स्वतंत्र हैं." इब थम ही बताओ कविता भी म्हारी और ये ऊत हमने ही स्वतंत्रता दे रहे सै. कविता छापनी बंद कर दी और हमने भी लिखना बंद कर दिया.
एक दिन मेरे एक मित्तर नै जंगल कोठा के महत्तम बारे मे बताया. मन्ने यूँ ही मजाक में ले लिया. पण एक दिन मैं अख़बार ले के जंगल कोठा मै गया हुआ था तो मेरे दिमाग मैं एक कविता की लहर उठी, मन्ने पेन और पैड जंगल कोठा मै ही रख लिया था.तो सीधी ही लिख मारी और एक नामी पत्रिका में भेज दी, के बताऊ भाई मेरे कविता परमुखता से छापी गई और मेरा गुण-गाण भी करया के बड़ी ऊँचे स्तर की कविता लिखते हैं. इसी तरह विषयों पर पकड रही तो देश के बड़े बड़े कवियों में नाम शुमार होगा. तो मन्ने जंगल कोठा का यो चमत्कार देख्या. मेरी कविता हिट हो गई.
मन्ने यो बात अपणे साहित्यकार दोस्त तै बताई तो वो बोल्या "इब तो मेरी बात का बिस्वास होया!" जद तो तन्ने समझ मै नहीं आया, यो जितने भी बड़े - बड़े आदमी सै सारे ही जंगल कोठा मैं अपणे सोच का छौंक लगाया करे, इस बात का मन्ने पहले तै ही पता था. इब मेरी समझ मै आ ग्या था के जितने भी छापण वाले संपादक सै सारे ही जंगल कोठा कै चिन्तक सै. तो भाईयों इस समस्या का मन्ने भी तोड़ पा गया और सरकार नै भी. आज मेरी कविता और कहाणी बिदेशा मैं भी पढ़ी जा रही सै. जंगल कोठा कै चिंतन नै मन्ने भी हिट कर दिया. जब से लेके आज तक मन्ने सारे कागज जंगल कोठा मै ही काले करे.
इब ब्लोगिंग शुरू कर दी. कई दिन यूँ ही खाली निकल गे. कोई मेरा ब्लॉग पढ़ण नहीं आया . मन्ने इसका भी तोड़ ढूंढ़या और पाया. सूबे-सूबे उठ कै अपणा लैपटॉप ले कै जंगल कोठा मै कमोड पै बैठ कै ही पोस्ट करया करूँ. बस पोस्ट करता ही एक घंटा मै दस-पंद्रह कमेन्ट आ जाया करे और आत्मा नै तसल्ली मिल जा सै. मैं अपणी पोस्ट भी उस टैम मै लगाया करूँ जद म्हारे सारे ब्लोगर अपणे-अपणे लैपटॉप ले के जंगल कोठा मै ही मिले सै. तो भाई मन्ने इनकी दुखती रग पकड़ रक्खी सै. अगर थमने भी कविता-कहाणी, व्यंग्य और पोस्ट हिट करनी सै तो जंगल कोठा का ही मंतर इस्तेमाल करो ओर हिट हो जाओ. मैं यो आप बीती भी जंगल कोठा तै ही पोस्ट कर रह्या सूं ...
ललित शर्मा
गुरुवार, 3 दिसंबर 2009
" हट जा ताऊ पाच्छे नै दारू पिवण दे जी भर के नै"
यो ले भाई,बात या थी के जित भी जाओ उत ताऊओ की ही चर्चा हो री सै, मन्ने भी सोच्या साँझ का टैम सै जरा थोड़ी देर कनाट प्लेस के चक्कर काट आऊं, रीगल-रिवोली कने थोड़ी देर आंख भी सेक ल्यांगे और एकाध ओल्ड मंक का अद्धा भी ले ल्यांगे, आज जाड़ा घणा हो रह्या सै, मैं पंहुचा ही था तो म्हारे फौजी ताऊ मनफूल सिंग सामने दिक्खे में तो बावला हो गया जी , अरे भाई ताऊ जी अडे पहले ही पहुच गये, मन्ने तो बताया भी कोणी, और यो भी उरे ही सुवाद ले रहया सै. ताऊ बेटे का नाता म्हारे हरियाणे में बड़ा ही मशहूर होया करे। बाज्जे वालों ने गाणा भी बना दिया - "हट जा ताऊ पाच्छे नै नाचण दे जी भरके नै" तो बात या सै के पुरे हरियाणा के छोरे इस ताऊ तै ही दुखी हो रहे सै । ना खान दे ,ना पीने दे , ना नाचण दे, किसी णा किसी रूप मैं बैरी हर जगां पा जा सै, अपणा लट्ठ हमेशा ही ताणे राखे सै बैरी, जद ही मै कहूँ सूं के ताऊ इब जमाना बदल गया, छोरों के साथ नाच्चो कुद्दो मौज मनाओ। ज्यादा परेसान करोगे तो चाँद मोहम्मद ने रास्ता तो काढ ही दिया सै। आगले का बाप्पू और दुखी सै । इसी फिजा लाया के पुरे खानदान की ही फिजा ख़राब करके धर दी । तो दुनिया के जितने भी बड़े-बड़े ताऊ जी सै, ईणने यो ही सलाह सै के इब मान भी जाओ । और छोरों ने नाचण दयो, कूदण दयो, मजे लेण दयो ,इब छोरों ने नया गाना और बना लिया " हट जा ताऊ पाच्छे नै दारू पिवण दे जी भर के नै"
एक बात तो में बतानी भूल ही रह्या था। कुछ दिन पहले मै ट्रेन में आ रह्या था । मेरे सामने वाली बर्थ पे दो लुगाई थी और एक छोट्टा बच्चा था, दिल्ली तै गाड्डी चाल्ली । आगरा में ओर पेसेंजर चढ़े , उनकी सीट पे जगां देख के बैठ गे । बोल्ले आगले टेसण तक जाणा सै । फेर आगले टेसण पे दूसरी सवारी भी चढ़ गी ,उनने भी आगले टेसण तक जाणा था। जब आगले टेसण पे सीट खाली हुयी तो में बोल्यो "माता जी आप अडे सो जाओ नही तो फेर कोई और बैठ जा गा । तो वा बोली " तन्ने मैं माताजी लाग्गू सूं ? तेरे ते कोई एक दो साल मेरी उम्र छोटी ही होगी। " मेरे तो जवाब सुण सांप सुंघ गया, काटो तो खून नही। मेरे ते रह्या नही गया "क्यूँ के बोले बिना रह नही सकता हरियाणे की इज्जत का सवाल था" तो मन्ने पूछा "ये छोटा बच्चा आपका पोता है के दोहिता? वा बोल्ली "दोहिता", मैं बोल्या "फेर तो हकीकत में मेरी उम्र आपसे बड़ी है। इससे बड़ा तो मेरा पडपोता सै ।" फेर वा बोल्ली " पण इतनी उम्र तो नहीं लगती आपकी" मै बोल्या " मैं जवान रहने वाली गोलियां खाता हूँ, तो बोल्ली " कहाँ मिलती है? मै बोल्या " के तूं भी लेगी", वो बोल्ली " ना ऐसे ही पूछ रही थी. तो मै बोल्या " फेर क्यूँ फालतू बावली हो रही सै," जिस गांव नहीं जाणा उसका रास्ता क्यूँ पूछना, नूये मजे ले,
तो ताऊ जी बड़ा खराब जमाना आ गया सै। जीजी कह दो जीजा जी मुफ्त में लो, भुआ कह दो फूफा साथ में मुफ्त में लो और अगर फूफा हो ही गया तो सारे रास्ते फेर उसकी सेवा करो, उसका हुक्का-चिलम भर के लाओ।
आख़िर में "लुहार" नै उसका यो ही तोड़ पाया के "मैडम" बोलो और आनन्द में रहो।
(और भाई कोई सलाह देनी तो मेरा घर का किवाड़ २४ घंटे खुल्ला सै। क्यूँ के बंद किवाड़ तो बाल-बच्चेदारों के ही मिलगे देश की जनसँख्या जो बढाणी से )
आपका
रमलू लुहार
शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009
फोटू देख के फँसणा ना कोय-फौजी ताऊ मनफूल सिंग
बात यूँ हुई के म्हारे ताऊजी के छोरे का ब्याह था। तैयारी बड़ी जोर-शोर ते चल रही थी। एक दिन ताऊ मेरे धोरे आए ओर बोल्ले- एँ रे रमलू तन्ने बेरा कोणी के राधे का ब्याह आखा तीज का मांड राख्या सै। तूं अडे आडा पड्या सै। चाल मेरे साथ घोडी करण चालना सै। मन्ने मन ही मन में सोच्या वाह रे ताऊ मेरे ब्याह में तो झोट्टा (भैसा) तक ल्याण ने कोन्या था इब अपने पूत के ब्याह में घोडी ढूंढे सै । चालो ताऊ जी बोल के मै तयार होग्या। दोनु जणे मोटरसायकिल पै बैठ के शहर चाल पडे। मेरे धोरे बुलेट मोटरसायकल थी। उसमे थोडी खराबी आ रक्खी थी। चालते-चालते मोटर सायकल मिसफायर करया करती। मेरे मन में आज ताऊ की परेड कराण की मन में आयगी। मै ताऊ ते बोल्या - ताऊ इस मोटर सायकल में माडी सी खराबी आ री सै। या जब गर्म हो जा सै । तो इसके इंजन में बम सा पाटे सै, इसी बात होगी तो मै गाड़ी रोकूंगा ओर तू उतर के भाज लिए। ब्याह का टैम सै । किते चोट - फेट लाग गी तो लोग सोचेंगे , के ताऊ दारू पीके पड़ मरया मुफ्त में बदनामी होगी, ताऊ बोल्या- ठीक सै। थोडी देर बाद गाड्डी ने मिसफायर करया मन्ने झट ब्रेक लाया ओर गाड्डी पटक के भाज लिया, आगे -आगे मै, पीछे -पीछे धोती की लाँग पकडे-पकडे ताऊ। मै एक किलोमीटर भाज्या होऊंगा। ताऊ की हालत ख़राब, बोल्या- मन्ने बेरा होता तो बस ते ही आ जाता। माटी ख़राब तो नही होती। मै बोल्या- ताऊ इब न होवे, चाल बैठ ले । हम शहर पहुँच गे ।इब आगे की कहाणी सुण ल्यो। हम घोडी आले के पंहुचे , उसने क्या इक्यावंसो लूँगा ,ताऊ मोल-भावः करण लाग्या तो घोडी आला बोल्या देख ताऊ आखातीज का सावा सै। तेरी समझ में आवे तो दे बयाना घोडी टैम ते तेरे घर पहुँच जायेगी। तो ताऊ बोल्या पहले घोडी दिखा। तो घोडी आले ने बताया के घोडी तो ब्याह में जा रही सै। उसकी फोटो दिखा सकूँ सुं। घोडी वाले ने फोटो दिखाई घोडी धोले-चिट्टे (सफ़ेद) रंग की तगडी जानदार थी। ताऊ ने फोटू देख के बयाना दे दिया। हम घर आ गे।आखातीज का दिन भी आगया , निकासी की तयारी हो ली थी । बच्चे चिल्लाने लगे "घोडी आगी-घोडी आगी" मन्ने बाहर निकल के देख्या तो घोडी तो मेरा मटा खूब सजा कै लाया था। घोडी पै दूल्हा बैठ गया निकासी चालु हो गई। गाम का चक्कर काट लिया। जब दूल्हा घोडी ते उतरया तो कूद के घोडी पे एक छोरा चढ़ गया। चढ़ते ही उसे एड लगाईं, लगते ही घोडी बेहोस हो के पड़ गयी. घोडी वाले ने रोला मचाना (चिल्लाना) शुरू कर दिया- मेरी घोडी मार दई-मेरी घोडी मार दई, इतनी देर म्हारा सरपंच आया बोल्या के रोला मचा रख्या सै। घोडी वाले ने सारा किस्सा बताना,सरपंच ने घोडी के ऊपर का कपडे का श्रृंगार हटवाया और घोडी के कान में एक फूंक मारी घोडी उठ के खड़ी होगी, ताऊ भी खड़े होके देख रह्या था. उसने देख्या के घोडी के तो बाल भी उडोडे थे, घोडी तो एक दम बूढी थी. ताऊ का छोह (गुस्सा) सातवें आसमान पे था. उसने कहा- के साले ठगी करता है. जो घोडी तुने बताई थी ये वो नहीं है. घोडी वाला बोला" मन्ने घोडी ना दिखाई उसकी फोटू दिखाई थी. ताऊ बोले वो तो जवान ठाडी गोदी की फोटू थी और ये बूढी फूस पड़ी है. घोडी वाला बोला ताऊ मै झूठ नहीं बोलता घोडी वाही सै. पण थोडा सा फर्क यो सै के जो फोटू मन्ने दिखाई थी वो "इसकी जवानी की थी." ताऊ के साथ तो चाला हो गया.जवान की फोटू दिखा कै बूढी घोडी थमा दी.
यो तो थी ताऊ के साथ धोखाधडी की बात,एक नया किस्सा सुण...................म्हारे सरपंच का छोरा फुलसिंग कॉलेज में पढ़े सै। होया नु के आज कल कम्पूटर पे इंटरनेट से दोस्ती-दोस्ती खेलने का काम चल रह्या सै। उसने उसमे भी भाग लिया.गांव का छोरा तो था ही.उसने ऑरकुट में अपनी पिछाण बनाई. जैसे ही ऑरकुट का पन्ना खुल्या उसने एक सोणी सी छोरी की फोटू दिखी. उसने उसके बारे में जानकारी लेने की कोशिश करी,लेकिन बात तो नु थी ना पहले दोस्त बनो फेर फोटू दिखेगी उसने दोस्ती का हाथ बढा दिया. उस छोरी ने दोस्ती कबूल कर ली. जब छोरे ने उसकी फोटू का अलबम खोल्या तो उसमे उसके बेटे के ब्याह की और उसके पोते के कुआ पूजन की फोटू थी. बेचारा फुलसिंग "फूल" बन गया. तो इस तरह के धोखे देने वाले तो पग-पग पे मिले हैं. लुहार ने इसका तोड़ यो पाया के भाई सौदा अपनी आँख के सामने देख के करो नहीं फेर थारी भी निकासी रूंग (बाल) उडी घोडी पे ही निकलेगी.
सबने लुहार की राम-राम,मेरी सलाह अच्छी लागी हो तो भाई एकाध कार्ड इंटरनेट पे लिख दियो।इससे मुझे पता चल जायेगा के भाइयों का प्यार म्हारी खातिर भी सै.
आपका
रमलू लुहार
(फोटो गूगल से साभार)
गुरुवार, 29 अक्तूबर 2009
टिप्पणियाँ मोडरेशन से प्रकाशन के बाद कहाँ गायब हो जाती हैं-कोई तो बताये
एक प्रश्न मेंरे दिमाग में कई दिन से घूम रहा है कि मोडरेशन से प्रकाशित करने के बाद टिप्पणियाँ ब्लॉग पर दिखती नहीं हैं, कहीं इस रास्ते में ही बीच में गायब हो जाती है, मै इससे अचम्भित हूँ, कई बार ऐसा हो चूका है. लेकिन मुझे इस समस्या का समाधान नहीं मिला, अभी "शिल्पकार के मुख से " ब्लॉग पर समीर भाई ने मेरी गजल प्रकाशित होते ही पहली टिप्पणी की थी मैंने उसे प्रकाशित किया और वह ब्लॉग पर नहीं दिख रही है, बीच में ही कहीं "उड़ने वाली स्याही" की तरह गायब हो गई, दूसरी टिप्पणी अभी गिरिजेश राव जी की आई वो प्रकाशित हो गयी है. पहले भी ऐसा कई बार हो चूका है.उस समय तो मैंने ध्यान नही दिया, आज मुझे ये गंभीर बीमारी लगी. इस लिए आप लोगों से पूछने के लिए एक पोस्ट लिखने के लिए मजबूर होना पड़ा है, कृपया किसी को मालूम हो तो मुझ जिज्ञासु की जिज्ञासा शांत करने की कृपा करे.
गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009
मैंने तो हार के भी बहुत कुछ पाया सै- फौजी ताऊ मनफूल सिंग का कहणा
आज ताऊ की किस्मत का फैसला होणे वाला सै. आज ताऊ के वोटों की गिनती होगी. तडके ते ही ताऊ, रमलू, बनवारी, रामेषर, शिम्भू. भोला, चन्दरु, कमली, राधे, चुन्नू, चौधरी, सारे मतगणना स्थल पै पहुँच गए. भाई जब इतनी मेहनत करी सै इलेक्शन में तो वोट गिणन जाणा ही पड़ेगा. सारे अपने "जुगाड़" पे बैठ के चल पड़े.
ताऊ-"के होगा रमलू?"
रमलू-"ठीक ही होगा ताऊ. आपां इलेक्शन जितांगे"
"यार मन्ने तो कुछ गड़-बड लागे सै"
"क्यूँ"
"वो मनी राम सै ना! सुसरे ने घणे ही रुपये बांटे सै."
"कोई बात ना ताऊ. जो होगा देख्या जायेगा" शिम्भू बोल्या
वोटां की गिनती चालू होयगी. ताऊ तो सारे राउंड मै मनी राम ते पीछे चल रह्या सै. आखरी राउंड में ताऊ मनी राम से ८३४५ वोटों से हार गया.
ताऊ बोल्या"चालो भाई लोगो-घर चालो"
"यो किस तरह हो गया ताऊ हमने तो समझ में ही नहीं आया"शिम्भू
"होना के था इब चौपाल में ही चल के बात करेंगे" ताऊ बोल्या
सारे चौपाल में पहुचे, देख्या तो पूरा गांव इक्कट्ठा हो रह्या था. सबके मुह उतरे हुए थे. जैसे कोई घणा बड़ा शोक का काम हो गया. ताऊ नै सबसे पहले उनसे कहा कि" भाईयों! आप इस तरह किस चीज का शोक मना रहे हो? अरे भाई!दो लडेंगे तो एक ही जीतेगा. दोनों नहीं जीतते. और मेरे धोरे तो कुछ था ही नहीं खोने के लिए. मैंने तो हार के भी बहुत कुछ पाया सै. वो दुनिया की सबसे कीमती चीज सै "आपका प्यार". आपने मन्ने जीताने में कोई कसर नहीं छोड़ी. मनी राम नै मुझे हराने में कोई कसर नहीं छोड़ी वो जीत गया. भाई उसने तो एक रात मैं ही तख्ता पलट दिया, इतने नोट बांटे के सारे गांव नोटों से भर दिये. और पैसा भी ऐसी चीज है बड़ों बड़ों का इमाण ख़राब कर दे सै. इसमें किसी की को गलती नहीं सै. मैं पैसे से कमजोर था. मेरे धोरे तो सिर्फ लोगों का प्यार था देने के लिए. फेर मैं ठहरा फौजी, सारी चीजें और विरोधियों के ओछे हथकंडे मैं समझ नहीं पाया. क्यूँ की!हमने तो छल करना सिख्या ही नही. जब तक हमारे देश में इलेक्शन मे रुपयों से वोट ख़रीदे जायेंगे तब तक हमारे जैसे लोग हारते ही रहेंगे. इब इस देश पे राज पैसे वाले ही कर सकते हैं. सारे ही करोड़ पति-अरब पति खड़े थे. सिर्फ मैं ही ऐसा था जिसके पास पैसे नहीं थे. वो तो आप लोगों का साहस और हिम्मत थी के मैं इलेक्सन लड़ गया. कुल मिला के मेरी जीत चोरी हो गई, मनी राम नै मेरी जीत चुरा ली. कोई बात नहीं, इब आगे और इलेक्शन आवेगा. और लड़ लेंगे. इब यो तो पता चल गया कुण से वोट बीकन वाले सै, भाई हमारी लोकप्रियता में तो कोई कमी नहीं थी, बस वोट ही नहीं पड़े.
"ताऊ एक बात बताऊँ- " मधु लिमये गोवा मुक्ति आन्दोंलन में गोवा की जेल में बंद थे. उनको जब जेल से छोड्या गया तो गोवा ते बम्बई तक सड़क के दोनों तरफ लगभग २० लाख लोगों ने उनका सुवागत किया था, जब मुंबई से इलेक्शन लड्या तो ८०० वोट मिले थे. वो भी बहुत परसिद्ध आदमी थे पर उनकी प्रसिद्धि वोट में नहीं बदल सकी. यो तो मजबूत लीडर के होता ही है." रमलू बोल्या.
ताऊ बोल्या-" भाइयों इस चुनाव में जिसने भी मुझे वोट दिये ,मेरी सहायता करी, उन सबका मै धन्यवाद करू सूं, इब आराम करण दयो, बाकी बात बाद में करेंगे. आप सबने मेरी राम-राम,
आपका
रमलू लुहार
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